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Dainik Jagran (Hindi)
शिक्षा की शर्मनाक हकीकत
| October 3, 2015 - 00:00केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी को दुनिया की सबसे खराब शिक्षा व्यवस्था विरासत में मिली है। भारत में शिक्षा का प्रभार कम गुणवत्ता वाले मंत्रियों को मिलता रहा है। अर्जुन सिंह जैसे लोग भी इस पद पर रहे हैं जिन्होंने व्यवस्था में सुधार की चिंता तो नहीं की, लेकिन ओबीसी आरक्षण कार्ड खेलने में जरूर लगे रहे। यही कारण है कि एक प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय परीक्षा में भाग लेने वाले भारत के 15 साल के लड़के और लड़कियों को केवल किर्गिस्तान के ऊपर सभी देशों में आखिरी से दूसरा स्थान मिला। हां, सचमुच। विज्ञान और अंकगणित की सामान्य परीक्षा में 2011 में 74 देशों में भारत के बच्चों
सुधारों के लिए जूझते मोदी
| August 14, 2015 - 00:00स्वतंत्रता दिवस का अवसर थोड़ा रुकने, रोजमर्रा की घटनाओं पर सोच का दायरा बढ़ाने और पिछले 68 साल के दौरान अपने देश की यात्रा पर नजर डालने का बढिय़ा वक्त होता है। आजाद देश के रूप में अपने भ्रमपूर्ण इतिहास पर जब मैं नजर डालता हूं तो कुहासे में मील के तीन पत्थरों को किसी तरह देख पाता हूं। अगस्त 1947 में हमने अपनी राजनीतिक लड़ाई जीती। जुलाई 1991 में आर्थिक आजादी हासिल की और मई 2014 में हमने सम्मान हासिल किया। मैं आजादी के बाद के आदर्शवादी दिनों में पला-बढ़ा जब हम आधुनिक, न्यायसंगत भारत के जवाहरलाल नेहरू के सपने में यकीन करते थे। लेकिन जैसे-जैसे साल बीतते गए, हमने पाया कि नेहरू क
बेहतरी के बीच बेचैनी
| May 23, 2015 - 00:00राजनीति अल्पअवधि की चीज है, जबकि अर्थशास्त्र दीर्घकालिक। दोनों का झुकाव एक ही लक्ष्य की तरफ होता है, लेकिन तात्कालिक तौर पर दोनों विपरीत दिशा में काम करते हैं। इस बेमेल स्वभाव के कारण अधिकांश लोग निराश होते हैं।
दिल्ली चुनाव को भूल जाएं मोदी
| February 19, 2015 - 16:46जिस दिन आम आदमी पार्टी दिल्ली में चौंकाने वाली जीत दर्ज कर रही थी, उसी दिन मैं पाकिस्तानी लेखक शाहिद नदीम के लाजवाब नाटक दारा का आनंद उठा रहा था। इसका मंचन हाल ही में लंदन के नेशनल थियेटर में किया गया था। तमाम स्कूली छात्र औरंगजेब और दारा शिकोह के बीच चल रही खूनी जंग के बारे में जानते हैं, लेकिन यह नाटक केवल उत्ताराधिकार की लड़ाई तक ही सीमित नहीं है। इसमें दिखाया गया है कि भारत क्या था, क्या बन गया और क्या होना चाहिए था। यह आज की जनता को संबोधित था और इसमें नाखुश पाकिस्तान और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गंभीर नसीहत देता है। इसमें यह नसीहत भी है कि पिछले दिनों दिल्
संस्कृत पर अधूरी बहस
| December 29, 2014 - 17:04एक समय था जब मैं विश्वास करता था कि मैं एक वैश्विक नागरिक हूं और इस पर गर्व अनुभव करता था कि घास की एक पत्ताी बहुत कुछ दूसरी पत्ती की तरह ही होती है। लेकिन अब मैं पाता हूं कि इस धरती पर घास की प्रत्येक पत्ती का अपना एक विशिष्ट स्थान है, जहां से वह अपना जीवन और ताकत पाती है। ऐसे ही किसी भी व्यक्ति की जड़ उस जमीन में होती है जहां से वह अपने जीवन और उससे संबंधित धारणा-विश्वास को अर्जित करता है। जब कोई अपने अतीत की तलाश करता है तो उन जड़ों को मजबूत करने में मदद मिलती है और खुद में आत्मविश्वास आता है। इतिहास को भूलने का मतलब है खुद अपने आपको भुलाने का खतरा। अपनी इस धारणा के तहत
मुक्त बाजार का मंत्र
| November 22, 2014 - 00:00बहुत से भारतीयों की धारणा अभी भी यही है कि बाजार धनी लोगों को और अधिक धनी तथा गरीबों को और अधिक गरीब बनाता है तथा यह भ्रष्टाचार एवं क्रोनी कैपिटलिज्म को बढ़ावा देता है। वास्तव में यह एक गलत धारणा है। वास्तविकता यही है कि पिछले दो दशकों में व्यापक तौर पर समृद्धि बढ़ी है और तकरीबन 25 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर निकले हैं। बावजूद इसके लोग अभी भी बाजार पर अविश्वास करते हैं। आंशिक तौर पर इसके लिए आर्थिक सुधारकों को दोष दिया जा सकता है, जो प्रतिस्पर्धी बाजार की विशेषताओं अथवा धारणा को ब्रिटेन की मार्गरेट थैचर की तरह आम लोगों को नहीं बता सके। सौभाग्य से हमारे पास अब नरेंद्र मोद
मजबूत नेतृत्व का असर
| September 13, 2014 - 00:00आम जनता की अपेक्षाओं के लिहाज से मोदी सरकार के अब तक के कार्यकाल पर निगाह डाल रहे हैं गुरचरण दास
बदलाव की बड़ी तस्वीर
| August 15, 2014 - 00:00मोदी सरकार को सत्ता में आए करीब ढाई माह हो चुके हैं। इतने कम समय में किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचना अभी बहुत जल्दबाजी होगी, लेकिन बदलाव के संकेत दिखने लगे हैं और एक बड़ी तस्वीर स्पष्ट होने लगी है। हां, इतना अवश्य है कि जहां लोगों को आमूलचूल बड़े परिवर्तन की अपेक्षा थी वहां निरंतरता पर आधारित छोटे-छोटे बदलाव नजर आ रहे हैं। बजट में बहुत बड़े बदलाव की अपेक्षा पाले बैठे लोगों को भी कुछ निराशा हुई है। इसी तरह जो लोग अनुदार हिंदू तानाशाही के उभार का डर पाले हुए थे वे ऐसा कुछ न होने के प्रति आश्वस्त हुए हैं। प्रधानमंत्री न तो अधिक तेजी से अपने प्रशंसकों की तमाम बड़ी अपेक्षाओं को प
भरोसे का अहसास
| June 16, 2014 - 00:00यदि भारतीयों ने अगस्त 1947 में राजनीतिक आजादी हासिल की थी तो जुलाई 1991 में उन्हें आर्थिक आजादी मिली, लेकिन मई 2014 में उन्होंने अपनी गरिमा हासिल की। यह नरेंद्र मोदी की अभूतपूर्व जीत के महत्व को दर्शाता है। भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब नव मध्य वर्ग को अपनी उम्मीदों और आकांक्षाओं की पूर्ति का भरोसा जगा है। मोदी ने लाखों लोगों का विश्वास जगाया है कि उनका भविष्य बेहतर है और इस मामले में किसी तरह से पूर्वाग्रही होने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि अपने कामों से स्थिति को बदला जा सकता है। एक बेहतरीन पुस्तक बुर्जुआजी डिग्निटी में देरद्रे मैक्लॉस्की ने बताया है कि 19वीं श
मोदी का भावी पथ
| May 12, 2014 - 18:02कई मायनों में यह माह बहुत उत्साहजनक रहा है। भारत में हो रहे विशाल चुनाव मेले को लेकर टीवी स्क्रीन पर जो कुछ देखने-सुनने को मिला वह बहुत ही आश्चर्यजनक है। मेरे मन-मस्तिष्क को जो तस्वीर सर्वाधिक कुरेदती है वह है पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कस्बे में रहने वाले एक मुस्लिम लड़के फरीद का आत्मविश्वास भरा रवैया। जब एक खबरिया चैनल की महिला पत्रकार ने उस लड़के का नाम पूछा तो उसने चेहरे पर मुस्कान बिखेरते हुए उत्तर दिया कि आखिर इसकी परवाह ही किसे है?