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कोरोना के बाद की दुनिया में भारत को ज्यादा इनोवेटिव स्कूलों की जरूरत होगी, यह तभी होगा जब हम निजी स्कूलों को ज्यादा आजादी देंगे

विदुर महाभारत में कहते हैं, ‘उनसे सावधान रहो, जो कहते कुछ हैं, करते कुछ हैं।’ वे राजा धृतराष्ट्र को ढोंगियों से बचने की सलाह दे रहे थे लेकिन वे भारतीय शिक्षा संस्थानों के बारे में भी यह कह सकते थे, जिनका ढोंग झूठे मिथकों में निहित है। इस ढोंग को कोरोना के बाद की दुनिया में चुनौती मिलेगी, जहां केवल सक्षम और कुछ नया करने वाले ही बचेंगे। दुर्भाग्य से जल्द आने वाली नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने इस हकीकत का सामना नहीं किया है।

सुशासन से भारत में घुलेंगे-मिलेंगे कश्मीरी

हमारा सामना इस असुविधाजनक सत्य से है कि हिंदुत्व व कश्मीरियत सहित हर राष्ट्रवाद काल्पनिक ह

कश्मीर के राजनीतिक दर्जेमें किए बदलाव से कश्मीरियों में गुस्सा, भय, अलगाव और आत्म-सम्मान खोने की भावना है। कई लोगों ने कश्मीरियत को पहुंची चोट को कानूनी और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखने की कोशिश की है लेकिन, जरूरत राष्ट्रीय पहचान की दार्शनिक समझ की है। खासतौर पर कश्मीरियों और भारतीयों को इस तथ्य को समझना होगा कि राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पहचानें काल्पनिक हैं। हिंदुत्व और कश्मीरियत दोनों आविष्कृत अवधारणाएं हैं। इससे कुछ रोष शांत करने में मदद मिलेगी।

गरीबी हटाओ की नहीं, अमीरी लाओ की जरूरत

कुछ दिनों पहले रविवार की रात एक टीवी शो में एंकर ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 5 लाख करोड़ डॉलर के जीडीपी के लक्ष्य का तिरस्कारपूर्व बार-बार उल्लेख किया। यह शो हमारे शहरों के दयनीय पर्यावरण पर था और एंकर का आशय आर्थिक प्रगति को बुरा बताने का नहीं था, लेकिन ऐसा ही सुनाई दे रहा था। जब इस ओर एंकर का ध्यान आकर्षित किया गया तो बचाव में उन्होंने कहा कि भारत की आर्थिक वृद्धि तो होनी चाहिए पर पर्यावरण की जिम्मेदारी के साथ। इससे कोई असहमत नहीं हो सकता पर दर्शकों में आर्थिक वृद्धि के फायदों को लेकर अनिश्चतता पैदा हो गई होगी।

हमें चाहिए असरदार राज और ताकतवर समाज

नरेन्द्र मोदी के फिर चुने जाने के बाद धीरे-धीरेबढ़ती तानाशाही का भय फिर जताया जारहा है लेकिन, मुझे उलटी ही चिंता है। मुझे शक्तिशालीसे नहीं बल्कि कमजोर व बेअसर राज्य-व्यवस्था(राज) से डर लगता है। कमजोर राज्य-व्यवस्था मेंकमजोर संस्थान होते हैं, खासतौर पर कानून का कमजोरराज होता है, जिसे न्याय देने में दर्जनों साल लग जातेहैं और अदालतों में 3.3 करोड़ प्रकरण निलंबित रहतेहैं। यह कमजोरों को शक्तिशाली के खिलाफ संरक्षणनहीं देती और विधायिका के हर तीन में से एक सदस्यके आपराधिक रिकॉर्ड को बर्दाश्त कर लेती है। कमजोरराज्य-व्यवस्था लोगों के मन में निश्चिंतता के बजायअनिश्चितता पैदा करती है औ