Dainik Bhaskar (Hindi)

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सभी महिलाओं को गरिमा और समानता दें

संदर्भ... तीन तलाक से आगे जाकर भारतीय समाज में नारी के खि लाफ घरेलू हिंसा खत्म होना ज्या दा जरूरी

स्टीव बेनन : व्हाइट हाउस में धर्म योद्धा


संदर्भ... गीता की अपनी सैन्यवादी व्याख्या से प्रेरित होकर मध्य-पूर्व में युद्ध छेड़ सकते हैं ट्रम्प के मुख्य रणनीतिकार

क्यों अपराधी जीत जाते हैं, उदारवादी नहीं?

जब भी चुनाव आते हैं तो मैं यह सोचकर हताश हो जाता हूं कि हम सच्चे, स्वतंत्र और सुधार चाहने वाले उदार नागरिकों की बजाय फिर अपराधियों, लुभावने नारों वाले भ्रष्टों और राजनीति क वंश के सदस्यों को चुन लेंगे। इस बार तमिलनाडु में शशिकला और अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प की धक्कादायक जीत साफ-सुथरे उदारवादियों की नाकामी को रेखांकित करती है।

नोटबंदी को बचाकर ऐसे निकालें कालाधन

नोटबंदी के तीन हफ्ते बाद आम आदमी की जिंदगी में तकलीफ, आर्थिक गतिविधियों में सुस्ती और कई क्षेत्रों में नौकरियां जाने की खबरें दिखने लगी हैं। अगली दो तिमाही में अर्थव्यवस्था दो प्रतिशत अंक से सिकुड़ जाएगी- राष्ट्रीय संपदा का यह बहुत बड़ा नुकसान है। लेकिन अब पीछे हटने की कोई गुंजाइश नहीं है। आइए, देखें कि नरेंद्र मोदी नोटबंदी को बचाकर कैसे कालेधन वाले भ्रष्टाचार के स्रोत खत्म कर सकते हैं।

मेडिकल शिक्षा में क्रांतिकारी बदलाव की पहल

एमसीआई को नया रूप देने की तैयारी, दुनिया की श्रेष्ठतम यूनिवर्सिटी में पढ़े पेशेवर आमंत्रित किए

दिल्ली के गलियारों में एक ताजा हवा बह रही है, जो तूफान में बदल सकती है। यह मंत्रालयों में नहीं, नीति आयोग में बह रही है, जिसने हाल ही में दुनिया की सर्वश्रेष्ठ यूनिवर्सिटी में पढ़े 50 पेशेवरों की सेवाएं ली हैं। इसका पहला स्वागतयोग्य प्रयोग भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) के अामूल परिवर्तन के हिस्से के रूप में मेडिकल कॉलेजों में होगा। विद्यार्थी क्या सीख रहे हैं, इस क्रांतिकारी रेग्यूलेटरी फिलॉसॉफी पर यह आधारित होगा। अभी हम फीस, प्राध्याप

जीएसटी का पारित होना असली राष्ट्रवाद

कुछ माह पहले मैं दिल्ली में एक आयोजन में गया था, जिसमें नफासत से वस्त्र पहने, वक्तृत्व में माहिर भारतीय और कुछ विदेशी मौजूद थे। वहां एक अलग से युवा ने प्रवेश किया। किसी ने पहचाना कि यह तो किसी हिंदी टेलीविजन से है। ऐसा लगा कि वह वहां ज्यादातर उपेक्षित ही रह गया, जब तक कि किसी ने उसे उकसा नहीं दिया। उसके बाद तो जेएनयू विवाद पर ऊंची आवाज में कर्कश बहस छिड़ गई। उसने हिंदू राष्ट्रवादी रुख का बहुत भावावेश के साथ बचाव किया, लेकिन उसे जल्दी ही शोर मचाकर चुप कर दिया गया। खुद को अपमानित महसूस कर वह जल्दी ही वहां से चला गया। उसके जाते ही ‘धर्मनिरपेक्ष-उदारवादियों’ ने राह

क्या शिक्षा के लिए यह ऐतिहासिक पल है?

केंद्रीय विद्यालय संगठन ने अपने 240 स्कूलों से 12वीं की परीक्षा में बच्चों के असंतोषजनक प्रदर्शन पर स्पष्टीकरण मांगा है। प्रधानमंत्री कुछ समय से हमारे स्कूलों के नतीजों से चिंतित हैं और अपने एक भाषण में उन्होंने यहां तक कहा है कि हर कक्षा में यह प्रदर्शित होना चाहिए कि वहां बच्चे से क्या सीखने की अपेक्षा है, ताकि पालकों को मालूम हो कि बच्चे को मदद की कहां जरूरत है। यह शायद स्मृति ईरानी को मानव संसाधन विकास मंत्रालय से हटाने का निर्णायक कारण रहा हो। वे खासतौर पर प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा पूछे गए प्रश्नों के प्रति अनुत्तरदायी रही हैं और इसकी कीमत उन्होंने चुकाई है। भारती

आवास क्षेत्र से आएगी जॉब क्रांति

मेरे मित्र मुझे बताते हैं कि प्रसन्नता ‘भीतरी काम’ है और जीवन के प्रति मेरे रवैये से इसका संबंध है। वे मुझे जिंदगी की रफ्तार कम करने, योगा करने, ध्यान सीखने, खूब मुस्कराने और ईश्वर में भरोसा रखने को कहते हैं। ऐसी आध्यात्मिक बातचीत आमतौर पर मुझे गंभीर कर देती है। मैंने पाया है कि मेरी जिंदगी की खुशी दिन-प्रतिदिन की छोटी बातों में होती है- अपने काम में डूबे होना, किसी दोस्त के साथ ठहाके लगाना या अचानक सुंदरता से सामना हो जाना। खुशी तो यहीं, इसी क्षण है; किसी सुदूर अालौकिक जीवन में नहीं।

कन्हैया नहीं, जॉब की कमी खतरा

भारतीय राजनीतिक जीवन अजीब और विडंबनाअों से भरा है। छात्र नेता कन्हैया कुमार को राजद्रोह और राष्ट्र-विरोधी आचरण के आरोप में गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तारी ने उन्हें हीरो बना दिया। इसे असहमति व्यक्त करने की स्वतंत्रता का प्रतीक माना गया। गृह मंत्री ने गिरफ्तारी का यह गलत तर्क देकर बचाव किया कि असाधारण लोकतांत्रिक देश अमेरिका भी राष्ट्र विरोध को सहन नहीं करता। गिरफ्तारी पर लगातार विरोध ने मीडिया का ध्यान सरकार के शानदार बजट से हटा लिया। एक अद्‌भुत भाषण में ‘स्वतंत्रता के प्रतीक’ ने अपना असली रंग दिखाया और एक ऐसी यथास्थितिवादी विचारधारा की तारीफ की, जिसमें आर्थ

अवसरों की चिंता करें असमानता की नहीं

फिर खबरों में है असमानता। फ्रांसीसी अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी भारत में आए तो दुनिया में असमानता पर खूब बोले। उनका समाधान था अत्यधिक धनी लोगों पर टैक्स। फिर भारतीय कंपनियों में भुगतान में बढ़ते फर्क पर रिपोर्ट आई। सीईओ की बड़ी तनख्वाहों पर आक्रोश जताया गया। टीवी चैनल विजय माल्या की जीवनशैली पर टूट पड़े, जो खतरे में पड़े हमारे बैंकों के कर्जदार हैं।