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स्टीव बेनन : व्हाइट हाउस में धर्म योद्धा
| April 4, 2017 - 14:00
संदर्भ... गीता की अपनी सैन्यवादी व्याख्या से प्रेरित होकर मध्य-पूर्व में युद्ध छेड़ सकते हैं ट्रम्प के मुख्य रणनीतिकार
ज्यादातर भारतीय इससे वाकिफ नहीं हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के मुख्य रणनीतिकार और उनकी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सदस्य स्टीव बेनन व्हाइट हाउस में आज सबसे प्रभावशाली और सबसे खतरनाक व्यक्ति हैं लेकिन, वे भगवद् गीता के बहुत बड़े प्रशंसक भी हैं। बेनन परिवार के सदस्य आमतौर पर सैन्य रुझान रखने वाले और इस्लाम के खि लाफ 'होली वॉर' छेड़ने के पक्षधर रहे हैं ताकि 'दुनिया में धर्म की स्थापना की जा सके।' उनकी लंबे समय की सहयोगी जुलिया जोन्स कहती हैं, 'वे विश्व में धर्म के बारे में बहुत बात किया करते थे- वे धर्म को बहुत गहराई से महसूस करते हैं...जो पूरी गीता में वर्णित सबसे शक्तिशाली सिद्धांतों में से एक हैं। वे याद करती हैं, 'कर्तव्य के लिए उनके मन में बहुत सम्मान है और धर्म की अवधारणा उन्हें गीता में मिली।'
गीता में कृष्ण की तरह बेनन भी मानते हैं कि दुनिया नैतिक संकट में है। परम्परागत यहूदी-ईसाई मूल्यों में आधार के अभाव में पश्चिम का राजनीति क व आर्थिक रूप से पतन हो रहा है। 2014 में उन्होंने वेटिकन में श्रोताओं के समक्ष कहा था, 'हम बहुत ही बर्बर और खूनी संघर्ष के शुरुआती दौर में हैं (और हमें) हमारे मूल्यों के लिए इस नई बर्बरता के खि लाफ लड़ना होगा, जो वह सब नष्ट कर देगी जो हमें पीछले दो-ढाई हजार वर्षों की विरासत में मिला है।' बताते हैं कि अमेरिका में मुस्लिम देशों के नागरिकों का प्रवेश रोकने के प्रयास के पीछे वे ही थे- उनके मुताबिक यह इस्लाम के खिलाफ अंतिम विजय की दिशा में पहला कदम है।
परंतु बेनन धर्म को अपनी जरूरतों के मुताबिक इस्ते माल करने में जल्दबाजी दिखा रहे हैं। यदि वे गहरे जाएं, तो उन्हें यह धर्म बहुत सूक्ष्म व जटिल दिखाई देगा। यही बुद्ध को धरती पर ढाई हजार साल पहले सबसे शांति पूर्ण धर्म के निर्माण की ओर ले गया। गांधी को आत्म संयम और अहिंसा का मार्ग अपनाने को प्रेरित कि या और भारत ने औपनिवेशि क शासन से बिना रक्त बहाए स्वतंत्रता हासिल कर ली। यह सब हिटलर, स्टालिन और माओ के साये में हुआ। गांधी ने बदले में अमेरिका में मार्टि न लूथर किंग व नागिरक अधिकार आंदोलन और दक्षिण अफ्रीका में नेल्सन मंडेला व नस्लवाद के खिलाफ आंदोलन को प्रेरित किया।
हालांकि, पहेली यही है कि 'धर्म' का नैतिक विचार कैसे सैन्यवादी स्टीव बेनन और महात्मा गांधी दोनों को आकर्षित करता है? एक जवाब तो यही है कि गीता में हर किसी के लिए कुछ न कुछ है। योद्धा से यह कहती है कि अपना धार्मिक कर्तव्य करो और न्याय के लिए युद्ध लड़ो, दार्शनिक के लिए ज्ञान योग के माध्यम से वह बुद्धिमत्ता का मार्ग प्रशस्त करती है तो भक्त को यह भक्ति योग से प्रेम व समर्पण का रास्ता दिखाती है। दूसरा जवाब यह है कि महान कृति यां एकाधिक व्याख्याओं को आमंत्रित करती हैं। गांधी के लिए महाभारत हर व्यक्ति के भीतर धर्म और अधर्म के बीच चल रहे संघर्ष का रूपक था। तीसरा उत्तर अर्जुन और कृष्ण की विरोधाभासी भूमिकाओं में निहित है। जब अर्जुन लड़ने से इनकार कर देता है तो वह दुनिया के सारे शासकों को शक्तिशाली संदेश भेजता है : युद्ध की घोषणा के पहले, इसके नैतिक परिणामों पर विचार करें, खुद से पूछें- क्या यह युद्ध अपने प्राणों की बलि देने लायक है? आमतौर पर शासक सिर्फ राजनीति क व आर्थिक नतीजों पर ही विचार करते हैं। यदि वे सोचते कि युद्ध में वे खुद भी मारे जा सकते हैं तो दुनिया में बहुत कम युद्ध होते। इस तरह गीता को युद्ध समर्थक और युद्ध विरोधी दोनों दृष्टिकोणों से पढ़ा जा सकता है।
चौथा उत्तर गीता में धर्म के दो भिन्न अर्थों में निहित है। गांधी साधारण धर्म की ओर आकर्षित थे, जिसमें अपनी चेतना के आतंरिक गुण प्रधान थे- दूसरों को चोट न पहुंचाना, अहिंसा और सत्य यानी सच बोलना । बेनन स्व-धर्म या सामाजिक कर्तव्य की ओर आकर्षित हुए, जिसका अनुवाद ऐसा होता है, 'मैं क्षत्रिय हूं और मेरा कर्तव्य है युद्ध लड़ना।' आखिर में, गांधी और बेनन के दृष्टिकोण साधन बनाम साध्य की समस्या पर आते हैं। कृष्ण का मानना है कि दुनिया को बचाने का साध्य ही न्यायोचित युद्ध लड़ने का औचित्य सिद्ध करता है। लड़ने से अर्जुन की झिझक बताती है कि लक्ष्य उचित हो फिर भी युद्ध छेड़ने की अपनी सीमाएं है। कोई व्यक्ति दोनों पर जोर दे सकता है- मानव दोनों तरह के नैतिक सहज ज्ञान के लिए खुला है। कई भारतीय राष्ट्रवादी- तिलक, हेडगेवार, लाजपत राय और यहां तक कि अरबिंदो- औपनिवेशि क शासन से भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ने की बात आती तो वे बेनन के साथ होते। किंतु बेशक, महात्मा गांधी का दृष्टिकोण हावी रहा।
बेनन राष्ट्रवादी हैं। उनका भरोसा इस केंद्रीय राष्ट्रवादी विचार में है कि विशुद्ध राष्ट्र-राज्य किसी तय सांस्कृति क पहचान पर आधारित होते हैं और वे एक- दूसरे के साथ स्थायी प्रतिस्पर्धा में लगे रहते हैं। चूंकि वाद के रूप में इस्लाम वैश्विक राजनीति क आंदोलन है, उनका मानना है कि यह राष्ट्र-राज्य व्यवस्था के लिए खतरा है। चूंकि धर्म के रूप में इस्लाम ने इस राजनीति क आंदोलन को जन्म दि या है, तो उनका मानना है कि समस्या इस्लाम मज़हब में ही है। इस खतरनाक दृष्टि कोण का भारतीय राजनेताओं के अलावा ओबामा और बुश ने पुरजोर तरीके से विरोध किया था।
हमें चिंता होनी चाहिए कि बेनन मध्य-पूर्व में फिर कोई विनाशक युद्ध छेड़ सकते हैं। जोन्स कहती हैं, 'स्टीव कट्टर सैन्य वादी हैं। उन्हें युद्ध से प्यार है- यह उनके लिए लगभग कविता की तरह है।' बेनन बौद्धि क रूप से कमजोर नहीं हैं। हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल के उनके सहपाठी उन्हें तीन सर्वाधिक बुद्धिमान लोगों में गिनते हैं- और यह तथ्य उन्हें और भी खतरनाक बनाता है। यह चिंता की बात है कि बेनन युद्ध की अत्यधिक ताकत रखने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति के सबसे निकट के सलाहकार हैं। मध्य-पूर्व में एक और युद्ध छेड़ने के पहले बेहतर होगा कि बेनन अर्जु न की तरह ठिठक जाएं और खुद को शहीद सैनिक की जगह रखकर स्वयं से पूछें, 'क्या यह संघर्ष जान देने लायक है?' संभव है भि न्न उत्तर आए, जो शायद अर्जु न के लड़ने से इनकार या गांधी की अहिंसा से प्रेरित हो। यदि वे धर्म की अवधारणा में गहराई तक जाएं तो उन्हें पता चलेगा कि यह हमारे कट्टरतावादी वक्त का अच्छा एंटी-डोट है, जब बहुत से लोग मानते हैं कि सत्य पर उनका ही एकाधिकार है और वे इसके लिए किसी की जान लेने को भी तैयार हैं।
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