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मजबूत नेतृत्व का असर
| September 13, 2014 - 00:00
आम जनता की अपेक्षाओं के लिहाज से मोदी सरकार के अब तक के कार्यकाल पर निगाह डाल रहे हैं गुरचरण दास
भारत के लोगों ने नरेंद्र मोदी का चुनाव बड़े पैमाने पर रोजगार का सृजन करने, बेहतर शासन देने और महंगाई पर लगाम लगाने के लिए किया। अभी यह कहना बहुत जल्दबाजी होगी कि वह इन तीनों ही वादों को पूरा कर सकेंगे। उनके कार्यकाल के शुरुआती तीन-साढ़े तीन माह यही दर्शाते हैं कि वह किस तरह इन लक्ष्यों को पूरा करना चाहते हैं। लोगों की अपेक्षाओं को देखते हुए सरकार को बहुत सजग रहना होगा। आज की तिथि तक मोदी का उल्लेखनीय योगदान यही है कि सरकार में सभी स्तरों पर कार्यो के निपटारे में चमत्कारिक सुधार आया है। कांग्रेस शिकायत कर रही है कि मोदी सरकार के पास नए विचारों का अभाव है और वह संप्रग सरकार के विचारों की नकल कर रही है। हालांकि सच्चाई यही है कि विचार किसी के भी पास हो सकते हैं, लेकिन उनका क्रियान्वयन कुछ लोग ही कर सकते हैं।
जो लोग मोदी सरकार द्वारा बड़े सुधार न किए जाने से निराश हैं वे यह नहीं समझ पा रहे हैं कि भारत की सबसे बड़ी समस्या विचारों, नीतियों और कानूनों का अभाव नहीं, बल्कि इनका खराब क्रियान्वयन है। क्रियान्वयन में कमजोरी ही वह मुख्य कारण जिससे भारत की विकास दर पिछले तीन वर्षो में गिरती गई। पहले दिन से ही मोदी ने अपेक्षाओं को काफी ऊंचा रखा। उन्होंने सुरक्षित रास्ते का अनुसरण करने से इन्कार किया और इस वर्ष के लिए राजकोषीय घाटे पर नियंत्रण पाने का ऊंचा लक्ष्य तय किया और कहा कि वह इसे हासिल कर सकते हैं। वह निर्धारित लक्ष्य हासिल कर पाएंगे, इसमें संदेह है, लेकिन उद्देश्य को लेकर एक नई सोच आई है तथा केंद्र समेत तमाम राज्यों और यहां तक कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के रुख में स्पष्ट बदलाव परिलक्षित होने लगा है। इसका प्रमाण प्रोजेक्ट मॉनिटरिंग ग्रुप अथवा परियोजना निगरानी समूह के गठन से लगाया जा सकता है, जो सैकड़ों की संख्या में रुकी पड़ी परियोजनाओं के अवरोधों को हटाने का प्रयास करेगा। इससे केंद्रीय मंत्रालयों के अधिकारी, राज्य सरकारें और बिजनेस वर्ग भी काफी उत्साहित है। हालांकि इसका गठन पहले ही हो गया था, लेकिन इस समूह को ऊर्जा तब मिली जब मोदी सत्ता में आए। ऐसी रिपोर्ट हैं कि पिछली सरकार में जो अधिकारी परियोजनाओं को रोकने में बाधक बन रहे थे और उदासीन रवैया अपनाए हुए थे अब वही अधिकारी जोशपूर्वक इन्हें आगे बढ़ा रहे हैं और लंबित परियोजनाओं को स्वीकृति दे रहे हैं।
अब चुनौतियां और बाधाएं खत्म हो रही हैं। एक समय इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं वर्षो तक रुकी रहने के कारण उद्यमी दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गए थे और बैंकों को भी काफी नुकसान उठाना पड़ता था। स्थिति कुछ ऐसी थी कि पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी मिलने के बाद भी बैंक वित्तीय मदद देने से इन्कार कर देते थे। नए भूमि अधिग्रहण कानून ने भी तमाम मुश्किलों को खड़ा करने का काम किया। तमाम राज्यों ने जानकारी दी कि नया कानून अस्तित्व में आने के बाद सभी तरह की भूमि की खरीद-बिक्री का काम बुरी तरह प्रभावित हुआ है। जब आप सैकड़ों की संख्या में रुकी परियोजनाओं के संदर्भ में इस समस्या का आकलन करते हैं तो आप सोचने को विवश होंगे और संप्रग सरकार की घटिया विरासत को लेकर देश की दुर्दशा पर रोएंगे या दुखी होंगे। इस मामले में हमें एक नई सकारात्मक ऊर्जा का प्रसार करने वाली मोदी सरकार को धन्यवाद देना चाहिए कि उसने हाथ खड़े करने के बजाय अधिकारियों को उत्तर खोजने के लिए प्रेरित किया और नतीजा यह हुआ कि सब कुछ चलता है की प्रवृत्ति वाले नौकरशाह अब उल्लेखनीय काम कर रहे हैं। मोदी द्वारा हाथ में ली गईं महत्वाकांक्षी परियोजनाओं को आगे बढ़ाने की दिशा में एकल खिड़की का प्रावधान बड़ा बदलाव लाने में सहायक होगा। भारत में कोई उद्योग शुरू करने के लिए तकरीबन 60 क्लीयरेंस लेने की जरूरत पड़ती है, इनमें से 25 केंद्र के स्तर पर और 35 राज्य स्तर पर होती हैं, लेकिन डिजिटलीकरण के बाद यह सारे काम एक ही परियोजना निगरानी समूह द्वारा संभव होंगे। पूर्ण डिजिटलीकरण के बाद उद्यमी इसके लिए ऑनलाइन आवेदन कर सकेंगे और अपने काम की प्रगति की जानकारी इंटरनेट पर देख सकेंगे। इससे यह भी पता चलेगा कि कौन अधिकारी फाइलों को रोक रहा है। इस तरह उद्यमियों के लिए एकल खिड़की का सपना साकार हो सकेगा। तीव्र क्रियान्वयन से रोजगार सृजन भी तेज होगा। एक रिपोर्ट के मुताबिक 2014 में नियुक्तियों में 20 फीसद की बढ़ोतरी हुई है जो पिछले पांच वर्षो में बेहतरीन प्रदर्शन है।
मोदी भाग्यशाली रहे कि अप्रैल से जून तिमाही में जीडीपी विकास दर बेहतर रही। यह अर्थव्यवस्था में बढ़ोतरी और उच्च विकास को दर्शाती है। स्पष्ट है कि रोजगार का अधिक सृजन होगा। मोदी को तेज क्रियान्वयन के खतरे के प्रति भी सजग रहना होगा। जन-धन योजना एक बेहतरीन कार्यक्रम है, जिससे सभी भारतीयों को बैंक खाते की सुविधा मिलेगी और निर्धन वर्ग से संबंधित योजनाओं के लिए नकदी हस्तांतरण के माध्यम से बड़ी मात्रा में सरकारी धन की बचत होगी। हालांकि यह योजना बैंकों पर अत्यधिक निर्भर है, जो गरीबों का खाता खोलने के लिए बहुत इच्छुक नहीं हैं। बैंक तभी रुचि लेंगे जब सब्सिडी की वर्तमान व्यवस्था को खत्म किया जाए और धन का प्रवाह गरीबों के लिए खुले इन खातों में किया जाए। इसमें समय लगेगा।
जहां तक मोदी की ओर से शासन में सुधार, क्लीयरेंस में पारदर्शिता के माध्यम से जवाबदेही के वादे की बात है तो निश्चित रूप से इससे लालफीताशाही खत्म होगी। सिंगापुर, अमेरिका जैसे तमाम देशों में बिजनेस शुरू करने में 3 से 5 दिन लगता है, जबकि भारत में 75 से 90 दिन। इसी कारण बिजनेस रैंकिंग रिपोर्ट में भारत का स्थान 134वां है। तीसरा मुद्दा महंगाई पर नियंत्रण का है। मोदी सरकार अतिरिक्त पड़े भंडारों से खाद्यान्नों को बेच रही है जिससे इनके दाम गिरे हैं, लेकिन यदि आयात शुल्क घटाए जाते हैं और महत्वपूर्ण खाद्यान्नों व सब्जियों आदि पर से गैर टैरिफ बाधाओं को खत्म किया जाता है तो वह इस तीसरे लक्ष्य को भी हासिल कर सकेंगे। पेट्रोलियम पदार्थो के दाम कम हुए हैं और मानसून का बहुत खराब न रहना मोदी के लिए लाभदायक है। यदि वह सरकारी खर्चो में कटौती कर सके तो महंगाई और कम होगी। ध्यान रहे संप्रग सरकार में सरकारी खर्च महंगाई बढ़ने की एक मुख्य वजह थी।
मोदी कार्यकाल के तीन महीने बताते हैं कि कैसे एक प्रभावी नेतृत्व बेहतर क्रियान्वयन के माध्यम से सरकार की क्षमता को बढ़ा देता है। कम महंगाई के साथ उच्च विकास को बनाए रखने के लिए मोदी को दूसरी पीढ़ी के आर्थिक सुधारों पर अमल करना होगा। भ्रष्टाचार पर प्रहार करने और बेहतर शासन के लिए उन्हें नौकरशाही, पुलिस और न्यायपालिका में सुधार करना होगा। सबसे महत्वपूर्ण बात, मोदी को केसरिया ब्रिगेड पर नियंत्रण करना होगा, जो उनके तीन वादों को पूरा करने में अनावश्यक अड़चन पैदा कर सकती है।
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