बेहतरी के बीच बेचैनी

राजनीति अल्पअवधि की चीज है, जबकि अर्थशास्त्र दीर्घकालिक। दोनों का झुकाव एक ही लक्ष्य की तरफ होता है, लेकिन तात्कालिक तौर पर दोनों विपरीत दिशा में काम करते हैं। इस बेमेल स्वभाव के कारण अधिकांश लोग निराश होते हैं।

अपनी सरकार की प्रथम वर्षगांठ पर यही बात प्रधानमंत्री मोदी के लिए समस्या भी है। हालांकि मोदी का रिकॉर्ड अच्छा है, लेकिन वह अपने समर्थकों की असाधारण अपेक्षाओं को नियंत्रित कर पाने में असफल रहे हैं। कुछ मुख्य प्राथमिकताओं को पूरा न कर पाने के कारण उनकी क्रियान्वयन क्षमता पर भी सवाल खड़े हुए हैं। संघ परिवार लगातार सरकार के समक्ष अड़चनें पैदा करता रहा है, लेकिन एक बड़े आश्चर्य की बात यही है कि मोदी अब व्यावहारिक हो चुके हैं और तीव्र व साहसिक सुधारों के बजाय क्रमिक आधुनिककर्ता के रूप में दिख रहे हैं। राजनीतिक मध्य मार्ग के प्रति झुकाव के कारण उन्होंने अपने अधिकांश समर्थक समूहों को नाखुश किया है।

एक वर्ष पहले की अपेक्षा अर्थव्यवस्था बेहतर हालत में है, लेकिन अभी भी यह अपनी वास्तविक क्षमता से दूर है। जीडीपी विकास में उल्लेखनीय प्रगति हुई है और अगले वर्ष तक भारत चीन को पछाड़कर दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बन जाएगा। महंगाई 18 महीने पहले की तुलना में इस समय आधी है। पिछले एक वर्ष से रुपया सर्वाधिक स्थिर मुद्रा है।

सरकारी वित्त की स्थिति बेहतर है। राजकोषीय और चालू खाते का घाटा नियंत्रण में है और 1991-92 की तुलना में पूंजी का प्रवाह सर्वाधिक है। बीमा और रक्षा क्षेत्र को अपेक्षाकृत उदार किया गया है और डीजल को विनियंत्रित कर दिया गया है। कोयला उत्पादन 8.3 फीसद बढ़ा है, जो पिछले 23 वर्षो में सर्वाधिक है। इससे कई बिजली संयत्रों को फिर से शुरू किया जा सका है। परियोजनाओं की स्वीकृति में व्याप्त अपंगता खत्म हुई है। आम बजट और रेलवे बजट, दोनों ही नए सिरे से निवेश उन्मुख हैं। पिछले 12 महीनों में घोटाले की एक भी घटना नहीं हुई है।

इससे उम्मीद जगी है कि भारत में बड़े घोटालों का समय खत्म हो गया है। पारदर्शी तरीके से कोयले और स्पेक्ट्रम की नीलामी हुई। ऑनलाइन आवेदन और स्वीकृतियां दी जा रही है, जिससे रिश्वतखोरी की संभावना कम होती है। आज दुनिया में भारत की साख और स्थिति बेहतर हुई है। व्यक्तिगत कूटनीति के लिए मोदी को धन्यवाद दिया जाना चाहिए। नेपाल और यमन में चलाए गए आपदा अभियान राहतकारी रहे हैं। इस ठोस रिकॉर्ड को देखते हुए आखिर कुछ लोग असहज क्यों हैं?

जब आप खस्ताहाल अर्थव्यवस्था के दौर से वापस निकलते हैं तो स्थिति को सुधारने में समय लगता है। उपभोक्ता मांग अभी भी कमजोर है, कंपनियों के परिणाम ज्यादा अच्छे नहीं हैं, जिस कारण रोजगार सृजन भी कमजोर है। कृषि के लिए यह एक खराब वर्ष रहा और एक कमजोर मंत्री मददगार साबित नहीं हुआ। विनिर्माण क्षेत्र में नौकरियों की गति धीमी रही, क्योंकि पिछली सरकार ने परियोजनाओं की स्वीकृति में देरी की, जिसके चलते इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनियों की बैलेंस शीट खराब हो गई। इन कंपनियों को बड़ी मात्र में बैंकों को पैसे का भुगतान करना पड़ा जिससे वे दिवालिया हो गईं।

अपने पिछले बजट में सरकार ने कंपनियों की वित्तीय स्थिति में सुधार होने तक इन्फ्रास्ट्रक्चर में सीधे खर्च करने की बात कही थी। ऐसा होने के बावजूद रोजगार सृजन वापस पटरी पर लौटने में समय लगेगा। पिछली सरकार की नीतिगत अपंगता के चलते मतदाताओं ने मोदी की क्रियान्वयन क्षमता को देखते हुए उनका चुनाव किया था। हालांकि वह अभी इस दिशा में अपनी स्पष्ट छाप नहीं छोड़ सके हैं। हां, यह अवश्य है कि जनधन योजना बेहद सफल रही।

एक वर्ष पूर्व कोई कल्पना नहीं कर सकता था कि प्रत्येक भारतीय परिवार के पास एक बैंक खाता हो सकता है। आधार कार्ड और मोबाइल फोन की वजह से अब गरीबों को सीधे नकदी हस्तांतरण हो सकेगा। यह एक ऐतिहासिक बदलाव है। इससे सब्सिडी में धांधली को रोका जा सकेगा। जनधन बैंक खाते से जुड़ी तीन योजनाओं को घोषित किया गया है जिनमें से एक बहुत कम कीमत पर दुर्घटना बीमा की सुविधा है, दूसरी जीवन बीमा है और तीसरी वरिष्ठ नागरिकों के लिए पेंशन योजना है। इनके लिए बहुत कम वार्षिक प्रीमियम देना होगा। महज 12 रुपये में दो लाख की दुर्घटना बीमा योजना, 60 वर्ष की आयु पूरी होने पर पेंशन सुविधा का लाभ मिलेगा और 330 रुपये के वार्षिक प्रीमियम पर दो लाख रुपये की जीवन बीमा योजना सुविधा दी जाएगी।

यदि मोदी व्यापार में सहूलियत वाला माहौल बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं तो उन्हें नौकरशाही की तमाम अनावश्यक प्रक्रियाओं को खत्म करना होगा। लालफीताशाही को खत्म करने की दिशा में भाजपा शासित राज्यों को पहल करनी होगी और अधिक प्रतिस्पर्धी तथा निवेश उन्मुख होना होगा। इसी तरह स्वच्छता अभियान की दिशा में भी उन्हें दूसरों को प्रेरित करना होगा कि किस तरह नगर-कस्बों की सफाई की जाए। संभवत: मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेस में सबसे बड़ी विफलता टैक्स विभाग है।

जहां मोदी निवेशकों को प्रेरित-प्रोत्साहित कर रहे हैं, वित्तमंत्री अरुण जेटली पूर्वानुमान योग्य और गैर प्रतिकूल माहौल निर्मित करने की बात रहे हैं वहीं यह आश्चर्यजनक है कि कर विभाग रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स (पिछली तिथि से कर लागू करना) को लेकर अभी भी अडिग है। इससे विदेशी संस्थागत निवेशक अत्यधिक नाराज हैं और उन्होंने भारतीय शेयरों को बेचना शुरू कर दिया है, जिससे शेयर बाजार में तेज गिरावट की स्थिति बनी है। भारतीय करदाता भी परेशान हैं, क्योंकि निदरेष तथा ईमानदार करदाताओं को भी कर अधिकारी लगातार परेशान कर रहे हैं।

इससे भारतीय नौकरशाही के रवैये में कोई बदलाव नहीं होने की धारणा लोगों के मन-मस्तिष्क में बनी हुई है। 1व्यावसायियों का भी यह विश्वास टूटा है कि एक गुजराती होने के कारण वह व्यावसायिक माहौल के लिए प्रतिबद्ध हैं। आर्थिक समूहों के साथ आकांक्षी युवा भी साहसिक तरीके से बाजार सुधारों की दिशा में नहीं बढ़ने से निराश हैं, क्योंकि वह तेजी से रोजगार सृजन चाहते हैं। सेक्युलरवादी नाखुश हैं कि उन्होंने अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंदूवादी बयान देने वालों को रोकने के लिए कुछ विशेष नहीं किया। उनके अपने समर्थक और संघ परिवार नाखुश हैं कि वह ईसाइयों और मुस्लिमों के प्रति अधिक नरम हैं।

मोदी की नजर आगामी चुनावों पर है। वह जानते हैं कि वर्तमान असंतोष गुजर जाएगा, क्योंकि राजनीति और अर्थशास्त्र अंत में मिल जाते हैं। कुल मिलाकर प्रधानमंत्री मोदी ने राहुल गांधी अथवा केजरीवाल से बेहतर प्रदर्शन किया है, जो मई 2014 में भारतीय मतदाताओं के समक्ष दो अन्य विकल्प थे। साख की दृष्टि से उनकी सरकार ने बेहतर सफलता हासिल की है, लेकिन निश्चित रूप से यदि वह मुख्य आर्थिक प्राथमिकताओं पर केंद्रित रहते तो और अधिक बेहतर कर सकते थे।

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