The $74m Mars mission benefits India every bit as much as clean water

Last week India sent a satellite into orbit around Mars,with a low-cost, nimble mission that has stunned the world. At $74m over three years, the cost was roughly one-ninth that of the latest (also successful) US mission, which took six years. And in reaching the red planet on its first attempt, India’s space agency succeeded where many other leading powers – including the US, Russia,China and Japan– failed.

लव जेहाद नहीं, मॉडर्न मिशन जरूरी

हमारे सामने मजेदार दृश्य है। एक तरफ ‘मॉडर्न’ प्रधानमंत्री हैं, जो केवल विकास की बात करते हैं जबकि दूसरी ओर उनके सहयोगी वोट हासिल करने के लिए मतदाताओं में ‘अन-मॉडर्न’ धार्मिक आशंकाओं को हवा देते हैं। आधुनिकता के गुणों में धर्म और  राज्य का पृथक अस्तित्व भी एक गुण है, जहां धर्म आधुनिक व्यक्ति के निजी जीवन तक सीमित होता है। नरेंद्र मोदी के आधुनिक विकासवादी एजेंडे को पटरी से कोई चीज उतार सकती है तो वह है आरएसएस जैसे हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों की ‘अन-मॉडर्न’ मानसिकता, जो अब भी सार्वजनिक जीवन में हिंदुत्व एजेंडा भरने में लगा है। उत्तरप्रद

मजबूत नेतृत्व का असर

आम जनता की अपेक्षाओं के लिहाज से मोदी सरकार के अब तक के कार्यकाल पर निगाह डाल रहे हैं गुरचरण दास

Cautious optimism is the verdict on Modi’s 100 days

Indians elected Narendra Modi to create masses of jobs, give good governance, and control inflation. It is too soon to tell if he will keep his three promises. The first hundred days indicate how he intends to pursue these three objectives. The verdict so far leaves us cautiously optimistic.

उम्मीद जगाने वाले 10 कदम

हम सब स्वतंत्रता दिवस पर नरेंद्र मोदी के भाषण से बहुत प्रभावित हुए। जवाहरलाल नेहरू के बाद से हमने लाल किले से ऐसा ताजगीभरा, उत्साह बढ़ाने वाला और ईमानदारी जाहिर करता भाषण नहीं सुना। मोदी हिंदू राष्ट्रवादी की तरह नहीं, भारतीय राष्ट्रवादी की तरह बोले। आदर्शवाद की ऊंची-ऊंची बातें नहीं कीं, कोई बड़ी नीतिगत घोषणाएं नहीं कीं और न खैरात बांटीं। आमतौर पर हमारे नेता बताते हैं कि वे हमें क्या देने वाले हैं। उन्होंने बताया कि हमें कौन-सी चीजें राष्ट्र को देनी चाहिए।

बदलाव की बड़ी तस्वीर

मोदी सरकार को सत्ता में आए करीब ढाई माह हो चुके हैं। इतने कम समय में किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचना अभी बहुत जल्दबाजी होगी, लेकिन बदलाव के संकेत दिखने लगे हैं और एक बड़ी तस्वीर स्पष्ट होने लगी है। हां, इतना अवश्य है कि जहां लोगों को आमूलचूल बड़े परिवर्तन की अपेक्षा थी वहां निरंतरता पर आधारित छोटे-छोटे बदलाव नजर आ रहे हैं। बजट में बहुत बड़े बदलाव की अपेक्षा पाले बैठे लोगों को भी कुछ निराशा हुई है। इसी तरह जो लोग अनुदार हिंदू तानाशाही के उभार का डर पाले हुए थे वे ऐसा कुछ न होने के प्रति आश्वस्त हुए हैं। प्रधानमंत्री न तो अधिक तेजी से अपने प्रशंसकों की तमाम बड़ी अपेक्षाओं को प

Can Narendra Modi change this weak state and enhance its capacity to act?

He has to correct a story of private success and public failure

Two months on, mantra’s clear: Less talk, more action

It’s been a little over two months since the Modi sarkar came to power. Too soon, perhaps, for a definitive assessment, but there are signs of change; patterns are emerging; and even hints of a larger picture. Where we had expected discontinuity there is surprising continuity. This may say something about the evolution of authority, a maturing of the Indian state. Those who expected big bang reforms are disappointed and those who feared an intolerant autocracy are reassured. Modi himself has been remarkably silent.

कई बातें स्पष्ट कर सकते थे जेटली

नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बने दो माह हो गए और यह बिल्कुल स्पष्ट हो गया है कि यह एक 'मोदी सरकार' है। उन्होंने सरकारी दफ्तरों के शीर्ष पर बैठे सभी प्रमुख सचिवों से सीधा संपर्क स्थापित कर लिया है। वे उन्हें फैसले लेने और यदि कुछ गड़बड़ हो जाता है तो उनसे संपर्क करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। सचिवों और प्रधानमंत्री के बीच मंत्रियों की दुविधापूर्ण स्थिति है, कैबिनेट के साधारण दर्जे को देखते हुए यह शायद अच्छा ही है। मंत्री तो खुश हो नहीं सकते। उन्हें रिश्तेदारों को नौकरियां देने की मनाही है। वे फैसलों में व्यक्तिगत हित नहीं देख सकते।

After months of talk, it’s go time for new PM

John Ruskin, the 19th century British art critic, once re marked that the greatest contribution that an aristocratic duke could make to the modern world would be to take a job as a grocer. This apparently bizarre suggestion goes to the heart of middle-class dignity -an idea that I identified in my last column to explain the significance of Narendra Modi’s victory. In our unequal, hierarchical Indian society, we need to correct our misguided notion about what constitutes a dignified life.