- Biography
- Books
- Commentary
- Newspapers
- Asian Age
- Bloomberg Quint
- Business Line
- Business Standard
- Dainik Bhaskar (Hindi)
- Divya Gujarati
- Dainik Jagran (Hindi)
- Divya Marathi
- Divya Bhaskar
- Economic Times
- Eenadu (Telugu)
- Financial Times
- Hindustan Times
- livemint
- Lokmat, Marathi
- New York Times
- Prajavani (Kannada)
- Tamil Hindu
- The Hindu
- The Indian EXPRESS
- Times of India
- Tribune
- Wall Street Journal
- Essays
- Interviews
- Magazines
- Essays
- Scroll.in
- Newspapers
- Speaking
- Videos
- Reviews
- Contact
उम्मीद जगाने वाले 10 कदम
| August 25, 2014 - 00:00
हम सब स्वतंत्रता दिवस पर नरेंद्र मोदी के भाषण से बहुत प्रभावित हुए। जवाहरलाल नेहरू के बाद से हमने लाल किले से ऐसा ताजगीभरा, उत्साह बढ़ाने वाला और ईमानदारी जाहिर करता भाषण नहीं सुना। मोदी हिंदू राष्ट्रवादी की तरह नहीं, भारतीय राष्ट्रवादी की तरह बोले। आदर्शवाद की ऊंची-ऊंची बातें नहीं कीं, कोई बड़ी नीतिगत घोषणाएं नहीं कीं और न खैरात बांटीं। आमतौर पर हमारे नेता बताते हैं कि वे हमें क्या देने वाले हैं। उन्होंने बताया कि हमें कौन-सी चीजें राष्ट्र को देनी चाहिए।
मोदी की शैली को वर्णित करने के लिए श्रेष्ठ शब्द हैं, व्यावहारिक, तथात्मक, गैर-आदर्शवादी और कार्यक्षम। वे नई नीतियों की घोषणा की बजाय नीतियों को अमल में लाने पर अधिक जोर देते हैं। जिन लोगों को बजट में धमाकेदार सुधारों की अपेक्षा थी, उन्हें निराशा हाथ लगी और जिन्हें असहिष्णु हिंदू तानाशाही के पुनरुत्थान की आशंका थी, वे आश्वस्त हुए हैं।
कांग्रेस ने हमें याद दिलाया कि मोदी सरकार तो सिर्फ यूपीए सरकार के एजेंडे की नकल कर रही है। अच्छे विचारों की नकल करना कोई बुरी बात नहीं है, यदि आप उन्हें अमल में लाकर दिखाएं। यूपीए सरकार के पास कई बेहतरीन विचार थे, लेकिन वह उन्हें अमल में लाने में नाकाम रही। मनमोहन सिंह वाकई आधारभूत ढांचे के क्षेत्र में बहुत कुछ करना चाहते थे, लेकिन उनमें अमल में लाने की काबिलियत नहीं थी।
यूपीए ने ‘वित्तीय समावेश’ का शोर तो बहुत मचाया पर इस दिशा में बहुत कम हासिल कर दिखाया। मुझे लगता है कि मोदी सरकार यह कर दिखाएगी। नौकरशाही के विरोध के बावजूद मोदी ने समझदारी दिखाकर यूपीए की आधार योजना को स्वीकार कर लिया। मोबाइल से भुगतान को जोड़ने वाली यह बायोमेट्रिक प्रणाली जल्द ही हर भारतीय को बैंक खाता खोलने में मददगार होगी। गरीबी रेखा के नीचे के लोगों को सब्सिडी की राशि नगद मिलेगी। इससे भ्रष्टाचार थमेगा।
सरकार का फोकस ‘बातें करने’ की बजाय ‘करने’ में है, इसके दस उदाहरण दिए जा सकते हैं। नजर आने वाला सबसे बड़ा परिवर्तन तो केंद्रीय नौकरशाही में पैदा हुआ आशावाद है। दिल्ली में बाबू लोग दफ्तरों में जल्दी आने लगे हैं, यह दूसरा बदलाव है। जनता को मिलने का समय जल्दी मिल रहा है, अधिकारियों का रवैया अधिक सहयोगभरा है, बैठकें वक्त पर शुरू हो रही हैं, कुछ तो जल्दी सुबह 9 बजे ही हो जाती हैं। तीसरा उदाहरण केरल की नर्सों को इराकी युद्ध क्षेत्र से 48 घंटों के भीतर घर लौटा लाने का है। इसने प्रशासन में नए पेशेवर अंदाज के दर्शन कराए।
चौथा, बरसों से ठप पड़ी परियोजनाओं को मंजूरी देने में दिखाया जा रहा उत्साह और ऊर्जा है। पांचवां, पड़ोसियों से रिश्ते सुधारने की दिशा में विदेश मंत्रालय में दिखाई जा रही सोदेश्यता व जोश है। यह हमारी बाहरी सुरक्षा का रूपांतरण कर सकता है। छठा, जन्म प्रमाण-पत्र, अंक सूची और इस जैसे अन्य दस्तावेजों के स्व-प्रमाणीकरण (सेल्फ अटेस्टेशन) की तरफ चुपचाप बदलाव। गांव में रहने वाली किसी गरीब विधवा को होने वाले फायदे की कल्पना कीजिए, जिसे पड़ोस के शहर में किसी अफसर से मिलने के लिए चक्कर लगाने पड़ते और आखिर में अपना काम कराने के लिए किसी दलाल या नोटरी को पैसे देने पड़ते थे। मूल दस्तावेजों की अंतिम चरण में जरूरत होगी, पर मीलों लंबा लाल फीता काट दिया गया है ।
सातवां कदम तीन प्रमुख श्रम सुधार हैं। हालांकि, इस मामले में केंद्र सरकार उतनी आगे नहीं गई है, जितनी राजस्थान सरकार, लेकिन इसने श्रम सुधारों की दिशा में दरवाजें खोल दिए हैं। इन सुधारों से हमारे आधे कारखानों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। कर्मचारियों का ज्यादा फायदा होगा और बिज़नेस करना आसान हो जाएगा। प्रशिक्षु रखने के खिलाफ भयानक कानून के खात्मे से कंपनियों के लिए प्रशिक्षु हासिल करना आसान बना देगा। इससे रोजगार देने वाले प्रवासियों खासतौर पर गांव से आने वाले लोगों को प्रशिक्षण देने के लिए प्रोत्साहित होंगे।
आठवां, श्रम मंत्रालय में इन्सपेक्शन को लेकर नए नियमों ने तो ‘इंस्पेक्टर राज’ पर चुपचाप प्रहार किया है। हम सब जानते हैं कि इंस्पेक्टर छोटी उत्पादन इकाइयों को परेशान करते हैं, लेकिन अब उन्हें ऊपर से अनुमति लेनी होगी और अपनी टिप्पणियां वेबसाइट पर डालनी होंगी। भ्रष्ट लेबर इंस्पेक्टर रातोंरात तो नहीं बदल जाएगा पर उसके व्यवहार पर अब कड़ा नियंत्रण होगा।
नौवां, सरकार ने भारतीय खाद्य निगम के गोदामों से अनाज बेचना शुरू कर दिया है और इससे बाजार में अनाज के दाम गिरने लगे हैं। दसवां, महंगाई से निपटने की एक पहल बजट में कृषि उपज विपणन समितियों द्वारा संचालित मंडियों का एकाधिकार तोड़ने संबंधी घोषणा है। इस पहल से आढ़तियों और थोक व्यापार के मठाधीशों में भय पैदा हुआ है, जिनके एकाधिकारवादी कमीशन अनाज की बढ़ती कीमतों के लिए आंशिक रूप से जिम्मेदार है। शीतगृहों की शृंखला निर्मित करने के निर्णय से किसानों को फायदा मिलेगा और उपभोक्ता के लिए कीमतें कम होंगी। केंद्र की ओर से किसान समर्थन मूल्य की सीमा तय करने का फैसला भी उत्साहवर्द्धक है। विडंबना यह है कि इससे भाजपा शासित मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ को ही सबसे ज्यादा चोट पहुंची है, जहां किसानों के वोट हासिल करने के लिए उन्हें जरा ज्यादा ही प्रीमियम दिया जा रहा था।
भारतीयों ने नरेंद्र मोदी को नौकरियां बढ़ाने, महंगाई घटाने और सुशासन के उनके वादे के कारण चुना है। उन्होंने लाखों नौकरियां निर्मित करने का वादा किया था। निवेश आने लगा है। निवेशकों में भरोसा पैदा होने से पूंजी बाजार में उछाल आया है। निर्माण क्षेत्र में रौनक लौटी है। यानी मोदी ने रोजगार बढ़ाने की दिशा में अच्छी शुरुआत की है।
महंगाई घटाने की बात है तो ऊपर बताए नौवें व दसवें महंगाई से लड़ने वाले ही कदम हैं। हालांकि, उन्हें और आगे जाने की जरूरत है। देश को परंपरा स्थापित कर देनी चाहिए कि कुछ जीवन आवश्यक चीजों की कीमतें यदि नाजायज तरीके से बढ़ रही हैं तो उनका नियमित रूप से आयात किया जाए। इससे आपूर्ति सुनिश्चित कर खाद्य पदार्थों में महंगाई से निपटने का सरकार का संकल्प जाहिर होगा। सबसे बड़ी बात, मोदी को सरकारी खर्च (खासतौर पर सब्सिडी) में कटौती करनी होगी, जो महंगाई का महत्वपूर्ण कारण है।
और आखिर में, मोदी ने ‘छोटी सरकार, बड़ा शासन’ का वादा किया था। इस मोर्चे पर उन्होंने कितना काम किया है? ऊपर बताए 1,2,6 और 7वें कदम सुशासन को लक्षित है। मोदी लोगों की अपेक्षाओं पर खरे उतरेंगे या नहीं, इस बारे में कुछ कहना अभी जल्दबाजी होगी, लेकिन उन्होंने बिना बड़ी गलतियां किए अच्छी शुरुआत तो कर ही दी है।
Post new comment