Dainik Bhaskar (Hindi) | 25 August 2014

हम सब स्वतंत्रता दिवस पर नरेंद्र मोदी के भाषण से बहुत प्रभावित हुए। जवाहरलाल नेहरू के बाद से हमने लाल किले से ऐसा ताजगीभरा, उत्साह बढ़ाने वाला और ईमानदारी जाहिर करता भाषण नहीं सुना। मोदी हिंदू राष्ट्रवादी की तरह नहीं, भारतीय राष्ट्रवादी की तरह बोले। आदर्शवाद की ऊंची-ऊंची बातें नहीं कीं, कोई बड़ी नीतिगत घोषणाएं नहीं कीं और न खैरात बांटीं। आमतौर पर हमारे नेता बताते हैं कि वे हमें क्या देने वाले हैं। उन्होंने बताया कि हमें कौन-सी चीजें राष्ट्र को देनी चाहिए।

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Dainik Jagran (Hindi) | 15 August 2014

मोदी सरकार को सत्ता में आए करीब ढाई माह हो चुके हैं। इतने कम समय में किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचना अभी बहुत जल्दबाजी होगी, लेकिन बदलाव के संकेत दिखने लगे हैं और एक बड़ी तस्वीर स्पष्ट होने लगी है। हां, इतना अवश्य है कि जहां लोगों को आमूलचूल बड़े परिवर्तन की अपेक्षा थी वहां निरंतरता पर आधारित छोटे-छोटे बदलाव नजर आ रहे हैं। बजट में बहुत बड़े बदलाव की अपेक्षा पाले बैठे लोगों को भी कुछ निराशा हुई है। इसी तरह जो लोग अनुदार हिंदू तानाशाही के उभार का डर पाले हुए थे वे ऐसा कुछ न होने के प्रति आश्वस्त हुए हैं। प्रधानमंत्री न तो अधिक तेजी से अपने प्रशंसकों की तमाम बड़ी अपेक्षाओं को प

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Times of India | 03 August 2014

It’s been a little over two months since the Modi sarkar came to power. Too soon, perhaps, for a definitive assessment, but there are signs of change; patterns are emerging; and even hints of a larger picture. Where we had expected discontinuity there is surprising continuity. This may say something about the evolution of authority, a maturing of the Indian state. Those who expected big bang reforms are disappointed and those who feared an intolerant autocracy are reassured. Modi himself has been remarkably silent.

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Dainik Bhaskar (Hindi) | 15 July 2014

नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बने दो माह हो गए और यह बिल्कुल स्पष्ट हो गया है कि यह एक 'मोदी सरकार' है। उन्होंने सरकारी दफ्तरों के शीर्ष पर बैठे सभी प्रमुख सचिवों से सीधा संपर्क स्थापित कर लिया है। वे उन्हें फैसले लेने और यदि कुछ गड़बड़ हो जाता है तो उनसे संपर्क करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। सचिवों और प्रधानमंत्री के बीच मंत्रियों की दुविधापूर्ण स्थिति है, कैबिनेट के साधारण दर्जे को देखते हुए यह शायद अच्छा ही है। मंत्री तो खुश हो नहीं सकते। उन्हें रिश्तेदारों को नौकरियां देने की मनाही है। वे फैसलों में व्यक्तिगत हित नहीं देख सकते।

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Times of India | 06 July 2014

John Ruskin, the 19th century British art critic, once re marked that the greatest contribution that an aristocratic duke could make to the modern world would be to take a job as a grocer. This apparently bizarre suggestion goes to the heart of middle-class dignity -an idea that I identified in my last column to explain the significance of Narendra Modi’s victory. In our unequal, hierarchical Indian society, we need to correct our misguided notion about what constitutes a dignified life.

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Dainik Jagran (Hindi) | 16 June 2014

यदि भारतीयों ने अगस्त 1947 में राजनीतिक आजादी हासिल की थी तो जुलाई 1991 में उन्हें आर्थिक आजादी मिली, लेकिन मई 2014 में उन्होंने अपनी गरिमा हासिल की। यह नरेंद्र मोदी की अभूतपूर्व जीत के महत्व को दर्शाता है। भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब नव मध्य वर्ग को अपनी उम्मीदों और आकांक्षाओं की पूर्ति का भरोसा जगा है। मोदी ने लाखों लोगों का विश्वास जगाया है कि उनका भविष्य बेहतर है और इस मामले में किसी तरह से पूर्वाग्रही होने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि अपने कामों से स्थिति को बदला जा सकता है। एक बेहतरीन पुस्तक बुर्जुआजी डिग्निटी में देरद्रे मैक्लॉस्की ने बताया है कि 19वीं श

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Times of India | 01 June 2014

If Indians won their political freedom in August 1947 and their economic freedom in July 1991, they have attained dignity in May 2014. This is the significance of Narendra Modi’s landslide victory. The hopes and dreams of an aspiring new middle class have been affirmed for the first time in India’s history. Modi has made millions believe that their future is open, not predetermined, and can be altered by their own actions.

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यदि भारतीयों ने अगस्त 1947 में आजादी और जुलाई 1991 में आर्थिक स्वतंत्रता हासिल की थी तो अब मई 2014 में उन्होंने गरिमा हासिल की है। नरेंद्र मोदी की जोरदार जीत का यही महत्व है। यदि आप मोदी को सत्ता में लाने वाले मतदाता को जानना चाहते हैं तो आपको एक ऐसे युवा की कल्पना करनी पड़ेगी जो हाल ही गांव से स्थानांतरित होकर किसी छोटे शहर में आया है। उसे अभी-अभी अपनी पहली नौकरी और पहला फोन मिले हैं और जिसे अपने पिता से बेहतर जिंदगी की तमन्ना है। मोदी के संदेश के आगे वह अपनी जाति व धर्म भूल गया, जिसे उसने अपने गांव में ही छोड़ दिया है। उसमें आत्मविश्वास पैदा हुआ और भविष्य के लिए उम्मीद

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Financial Times | 18 May 2014

The country’s new leader must now initiate institutional reforms, says Gurcharan Das

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Dainik Jagran (Hindi) | 12 May 2014

कई मायनों में यह माह बहुत उत्साहजनक रहा है। भारत में हो रहे विशाल चुनाव मेले को लेकर टीवी स्क्रीन पर जो कुछ देखने-सुनने को मिला वह बहुत ही आश्चर्यजनक है। मेरे मन-मस्तिष्क को जो तस्वीर सर्वाधिक कुरेदती है वह है पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कस्बे में रहने वाले एक मुस्लिम लड़के फरीद का आत्मविश्वास भरा रवैया। जब एक खबरिया चैनल की महिला पत्रकार ने उस लड़के का नाम पूछा तो उसने चेहरे पर मुस्कान बिखेरते हुए उत्तर दिया कि आखिर इसकी परवाह ही किसे है?

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