Times of India | 10 April 2016

My friends tell me that happiness is an ‘inside job’ and entails changing my attitude to life. They ask me to slow down, do yoga, learn to meditate, smile a lot and think of God. This spiritual talk usually leaves me feeling grim and inadequate. I have found instead that happiness lies in the small, everydayness of life — in getting absorbed in my work, laughing with a friend, stumbling onto something beautiful. It seems to be here and now, not in a distant afterlife. I could be wrong, of course, as I have not experienced the afterlife.

Read more
Dainik Bhaskar (Hindi) | 07 April 2016

भारतीय राजनीतिक जीवन अजीब और विडंबनाअों से भरा है। छात्र नेता कन्हैया कुमार को राजद्रोह और राष्ट्र-विरोधी आचरण के आरोप में गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तारी ने उन्हें हीरो बना दिया। इसे असहमति व्यक्त करने की स्वतंत्रता का प्रतीक माना गया। गृह मंत्री ने गिरफ्तारी का यह गलत तर्क देकर बचाव किया कि असाधारण लोकतांत्रिक देश अमेरिका भी राष्ट्र विरोध को सहन नहीं करता। गिरफ्तारी पर लगातार विरोध ने मीडिया का ध्यान सरकार के शानदार बजट से हटा लिया। एक अद्‌भुत भाषण में ‘स्वतंत्रता के प्रतीक’ ने अपना असली रंग दिखाया और एक ऐसी यथास्थितिवादी विचारधारा की तारीफ की, जिसमें आर्थ

Read more
Times of India | 13 March 2016

Indian political life is rich in ironies. A leftist student leader, Kanhaiya Kumar, is arrested for sedition and anti-national conduct. The arrest turns him into a hero and a symbol of the freedom to dissent. The home minister defends the arrest by wrongly citing the United States as an exemplary democracy that doesn’t tolerate anti-national dissent.

Read more
Dainik Bhaskar (Hindi) | 27 February 2016

फिर खबरों में है असमानता। फ्रांसीसी अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी भारत में आए तो दुनिया में असमानता पर खूब बोले। उनका समाधान था अत्यधिक धनी लोगों पर टैक्स। फिर भारतीय कंपनियों में भुगतान में बढ़ते फर्क पर रिपोर्ट आई। सीईओ की बड़ी तनख्वाहों पर आक्रोश जताया गया। टीवी चैनल विजय माल्या की जीवनशैली पर टूट पड़े, जो खतरे में पड़े हमारे बैंकों के कर्जदार हैं।

Read more
Divya Bhaskar | 27 February 2016

અસમાનતા ફરી સમાચારોમાં છે. ખાસ કરીને સંસદનું બજેટસત્ર શરૂ થયું હોય ત્યારે તો અસમાનતાની વાતો વધારે જોરશોરથી કરવામાં આવે છે. ફ્રાન્સના અર્થશાસ્ત્રી થૉમસ પિકેટી ભારતમાં આવ્યા ત્યારે તેઓ જગતમાં અસમાનતા વિશે ઘણું બોલ્યા હતા. તેમનો જવાબ હતો કે અત્યંત ધનિક લોકો પર ટેક્સ નાખવો જોઈએ. પછી ભારતીય કંપનીઓમાં વેતન માળખામાં મોટા તફાવત વિશેનો અહેવાલ આવ્યો. સીઇઓના તોતિંગ પગારો સામે આક્રોસ વ્યક્ત કરાયો. ટીવી ચેનલો અનેક બેન્કોમાં નાદારી નોંધાવી ચૂકેલા વિજય માલ્યાની વૈભવી જીવનશૈલી પર તૂટી પડ્યા.

Read more
Times of India | 24 February 2016

Inequality has again been in the news. Thomas Piketty was in India and he spoke eloquently about inequality in the world. The French economist’s answer is a progressive global tax on the ultra-rich.

Read more
Divya Bhaskar | 03 February 2016

સમાજવાદીઓ સોવિયેટ સંઘની સફળતાથી એટલા પ્રભાવિત થયા હતા કે તેમણે પૂર્વ તરફ જોયું જ નહીં

Read more
Dainik Bhaskar (Hindi) | 03 February 2016

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए यह करो या मरो जैसा वर्ष है। यदि 2016 में आर्थिक वृद्धि महत्वपूर्ण तरीके से नहीं बढ़ती और थोक में नौकरियां पैदा नहीं होतीं, तो हम अच्छे दिन भूल ही जाएं यही बेहतर होगा। रोजगार पैदा करने और गरीब देश को धनी बनाने का आदर्श नुस्खा तो श्रम-बल वाले, निम्न टेक्नोलॉजी के थोक उत्पादन का निर्यात है। इसी ने पूर्वी एशिया, चीन और दक्षिण-पूर्वी एशिया को मध्यवर्गीय समाजों में बदला। पिछले 60 वर्षों में भारत मैन्यूफैक्चरिंग की बस में सवार होने से चूकता रहा है और आज वैश्विक प्रति व्यक्ति आय के छठे हिस्से से भी कम के साथ भारत सबसे गरीब बड़ी अर्थव्यवस्था है। उसका

Read more
Tamil Hindu | 01 February 2016

பிரதமர் மோடிக்கு ‘செய் அல்லது செத்துமடி’ என்பதான ஆண்டு இது. 2016-ல் பொருளாதார நடவடிக்கைகள் கணிசமாக ஏற்பட்டு கோடிக்கணக்கில் வேலைவாய்ப்புகள் உருவாகவில்லை என்றால் ‘அச்சா தின்’ என்பதை மறந்துவிட வேண்டிய துதான். உயர் வளர்ச்சி வேகம்தான் வேலைவாய்ப்புகளைக் குவிக்கும், இந்தியா போன்ற ஏழை நாடு வளர்ச்சி பெற வேண்டும் என்றால் தொழிலாளர்களால் அதிகம் நேரடியாகத் தயாரிக்கப்படும், குறைந்தளவு தொழில்நுட்பம் தேவைப் படும் துறைகளில் வேலை வாய்ப்பு கள் உருவாக வேண்டும்.

Read more
Times of India | 24 January 2016

This is a make or break year for Prime Minister Modi. Unless economic growth picks up significantly in 2016 and jobs come in masses, we can forget about achhe din. The standard recipe for making a poor country rich is to export labour-intensive, low-tech manufactured goods. It transformed East Asia, China and South-East Asia into middle-class societies.

Read more