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Modi is building on India’s wondrous trading past| June 14, 2015 - 00:00Last week’s historic accord with Bangladesh erased a dispute as old as Kashmir while nudging the subcontinent towards a common market. Trade and investment have been the refreshing focus of Prime Minister Narendra Modi’s diplomacy. He understands instinctively that power emanates from a bowl of rice, not from the barrel of a gun. In this respect, he is following an ancient tradition that once made India a great trading nation that carried its amazing soft power on merchant ships. |
साहसी फैसले न होने से निराशा| May 26, 2015 - 00:00राजनीति थोड़े वक्त का खेल होता है, जबकि अर्थव्यवस्था लंबे समय का। दोनों आखिर में मिलते हैं, लेकिन बीच के समय में वे विपरीत दिशाओं में जाते लगते हैं। इस विरोधाभास के कारण ज्यादातर लोगों का निराश होना अपरिहार्य है। अपनी सरकार की पहली वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यही समस्या है। अच्छे रेकॉर्ड के बावजूद वे अपने समर्थकों की असाधारण रूप से ऊंची अपेक्षाओं को मैनेज करने में नाकाम रहे। मुख्य प्राथमिकताओं पर निगाह न रख पानेे से योजनाएं अमल में लाने की उनकी योग्यता संदेह के घेरे में आ गई। संघ परिवार लगातार सरकार के लिए शर्मनाक स्थिति पैदा करता रहा है। सबसे बड़ा आश्चर्य तो य |
बेहतरी के बीच बेचैनी| May 23, 2015 - 00:00राजनीति अल्पअवधि की चीज है, जबकि अर्थशास्त्र दीर्घकालिक। दोनों का झुकाव एक ही लक्ष्य की तरफ होता है, लेकिन तात्कालिक तौर पर दोनों विपरीत दिशा में काम करते हैं। इस बेमेल स्वभाव के कारण अधिकांश लोग निराश होते हैं। |
One-year itch: Modi shift to political centre angers both right and left| May 17, 2015 - 00:00Politics is a short game while economics is a long one. Both tend to converge in the end but in the interim they pull in opposite directions. Because of this mismatch, most of the people are invariably disappointed. This is Prime Minister Modi’s problem on the first anniversary of his government. Although his record is reasonably good, he has neither met the extraordinary expectations of his supporters nor followed through on key priorities. |
Ten steps that can put the railways back on track| April 19, 2015 - 00:00Once upon a time we used to proudly call Indian Railways the ‘nation’s lifeline’. Today, we are embarrassed by it. Every Indian had an impossibly romantic railway memory. Today these memories have faded as successive politicians have played havoc with a grand old institution. The root problem is that railways is a state monopoly, starved by politics of investment and technology, and prevented by a pernicious departmental structure from becoming a modern, vibrant enterprise. |
Land agitators forget even a farmer’s son needs a job| March 22, 2015 - 00:00India elected Narendra Modi to control inflation, restrain corruption and bring back jobs. Inflation has come under control; there has been no corruption scandal in the past ten months; but jobs are nowhere in sight. Modi is banking on his ambitious ‘Make in India’ programme to revive manufacturing and deliver a million new jobs that are needed each month. But the problem is that manufacturing is precisely the sector that has historically let India down. Since 1991, India’s growth has been driven largely by services. |
दिल्ली चुनाव को भूल जाएं मोदी| February 19, 2015 - 16:46जिस दिन आम आदमी पार्टी दिल्ली में चौंकाने वाली जीत दर्ज कर रही थी, उसी दिन मैं पाकिस्तानी लेखक शाहिद नदीम के लाजवाब नाटक दारा का आनंद उठा रहा था। इसका मंचन हाल ही में लंदन के नेशनल थियेटर में किया गया था। तमाम स्कूली छात्र औरंगजेब और दारा शिकोह के बीच चल रही खूनी जंग के बारे में जानते हैं, लेकिन यह नाटक केवल उत्ताराधिकार की लड़ाई तक ही सीमित नहीं है। इसमें दिखाया गया है कि भारत क्या था, क्या बन गया और क्या होना चाहिए था। यह आज की जनता को संबोधित था और इसमें नाखुश पाकिस्तान और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गंभीर नसीहत देता है। इसमें यह नसीहत भी है कि पिछले दिनों दिल् |
एक त्रासदी का मानवीय पहलू| February 18, 2015 - 00:00पिछले छह हफ्तों से लेखक राजनेता शशि थरूर उस अजीब से चलन के शिकार हैं, जिसे मीडिया ट्रायल का नाम दिया जाता है। जब जिंदगी बुरा मोड़ लेती है तो मीडिया निष्ठुर भी हो सकता है। एक दिन तो यह सेलेब्रिटी को आसमान की बुलंदियों पर ले जाने में खुशी महसूस करता है और उतनी ही खुशी से यह अगले ही दिन उन्हें धड़ाम से नीचे लाकर पटक देता है। थरूर की पत्नी की त्रासदीपूर्ण मौत को एक साल से कुछ ज्यादा अरसा हो गया है। 1 जनवरी 2014 को सुनंदा ने अपने पति पर पाकिस्तानी पत्रकार के साथ अंतरंग संबंधों का आरोप लगाया था। जल्द ही दिल्ली के पांच सितारा होटल में उनकी मौत हो गई। कहा गया कि यह खुदकुशी थी। परंत |