कम सरकार, अधिकतम शासन का पहला सबूत

ठंड का यह मौसम हमारे लिए अब तक असंतोष भरा ही रहा है। हम पूरे पश्चिमोत्तर को घेर लाने वाले विषैले स्मॉग, घटती आर्थिक वृद्धि, नौकरियां जाने और जटिल जीएसटी से निपटने में लगे हैं। लेकिन, आखिरकार एक अच्छी खबर आई है। बिज़नेस करने की आसानी के मामले में भारत विश्व बैंक की वैश्विक रैंकिंग में 30 स्था न ऊंचा उठा है। सारे दस मानकों पर सुधार हुआ है। कोई अन्य देश ऐसा नहीं कर सका है। इस रिपोर्ट को आईडीएफसी/नीति आयोग के 3,200 से ज्यादा कंपनियों के एंटरप्राइज सर्वे पर आधारित अध्ययन के साथ पढ़ने से इस भरोसे का ठोस आधार मिलता है कि आखिरकार जमीन पर सांस्थानिक सुधार शुरू हो गए हैं। यह मोदी के 'न्यू नतम सरकार, अधिकतम शासन' के वादे का पहला सबूत है। मूडी ने भी भारत की रेटिंग बढ़ाकर यह रेखांकित किया है कि केवल संस्था गत सुधारों से ही भारत पूरी क्षमता का दोहन कर सकेगा।

भारत की कहानी निजी क्षेत्र की कामयाबी और सार्वजनिक क्षेत्र की नाकामी की कहानी है। भारत इसलिए कामयाब हो रहा है, क्योंकि इसके लोग आत्म- निर्भर, महत्वाकांक्षी, किफायती और जोखिम लेने वाले हैं। दुर्भाग्य से हमारी लालफीताशाही और नौकरशाही सर्वाधिक नौकरियां पैदा करने वाले छोटे और मध्यम उद्यमियों का उत्साह खत्म कर देती हैं। कानून-व्यवस्था, शिक्षा, स्वास्थ्य और जल-आपूर्ति जैसी सेवाओं में सरकार की जरूरत होती है, वहां यह बहुत खराब काम करती है। जहां इसकी जरूरत नहीं है, वहां यह जरूरत से ज्यादा सक्रिय है। विश्व बैंक 15 साल से इस ओर ध्यान दिलाता रहा है पर भारत की हर सरकार ने बिज़नेस करने की आसानी की उपेक्षा की। विश्व बैंक के मुताबिक बिज़नेस करने की आसानी को गंभीरता से लेने वाली यह पहली भारतीय सरकार है। जब मोदी ने 142 से उठकर 50वें स्थान पर आने का लक्ष्य रखा तो हर किसी ने इसे दिवास्वप्न माना लेकिन, अब यह हासिल करने लायक लगता है। शासन और नागरिकों का आदान-प्रदान ऑनलाइन लाना हमारी सफलता का मुख्य कारण है। दूसरा कारण राज्यों में स्पर्धा की भावना पैदा करना है। एक बार जीएसटी और दिवालि या कानून की दिक्कतें दूर हो जाएं तो भारत की रेटिंग में और सुधार होगा। विश्व बैंक अधि कारियों के अनुसार पहली बार नौकरशाही लोगों के फीडबैक पर ध्यान दे रही है। निचले स्तर की नौकरशाही का रवैया आखिरकार बदलने लगा है। वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने कबूला है कि उन्होंने जीएसटी प्रशासन में कई गलतियां की हैं और वे संशोधन कर रहे हैं ताकि यह लोगों के अधिक अनुकूल बन जाए।

राज्यों की असेसमेंट रिपोर्ट में आंध्र/तेलंगाना पहले स्थान पर है और उसके बाद गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश हैं। दिल्ली, केरल, असम, हिमाचल और तमिलनाडु सबसे खराब प्रदर्शन वाले राज्य हैं। आईडीएफसी रिपोर्ट ने पुष्टि की है कि बिज़नेस करने की आसानी में सुधार करने वाले राज्यों को ऊंची आर्थिक वृद्धि का पुरस्कार मिला है। राज्य इस रैंकिंग का इस्तेमाल निवेशक, कंपनियां और नौकरियां आकर्षित करने के लिए कर रहे हैं। भारतीय न्यायपालिका सबसे कमजोर कड़ी पाई गई। अनुबंधों को लागू करने में लगने वाले वक्त के मामले में भारत अब भी सबसे निचले स्तर वाले देशों में है। खरीदार और विक्रेता के बीच विवाद के निराकरण पर बिज़नेस निर्णायक रूप से निर्भर है। लेकिन, भारत में अब भी कमर्शियल ट्रेनिंग प्राप्त जजों वाली जिला वाणिज्यिक अदालतों का अभाव है। न ही हम जजों को सुनवाई के पहले दस्तावेज ऑनलाइन पढ़ने की अनुमति देते हैं वरना फैसले जल्दी होने लगें। अनुबंध को लागू करने में चीन में भारत की तुलना में दहाई वक्त ही लगता है।

बिज़ नेस करने की आसानी भ्रष्टाचार से लड़ने वाली बड़ी ताकत है। अण्णा हजारे और अरविंद केजरीवाल लोकपाल के विचार से इतने प्रभावित थे कि उन्हें अहसास ही नहीं हुआ कि बिज़नेस करने की आसानी भ्रष्टाचार हटाने में कहीं बड़ा योगदान दे सकती है। भ्रष्टाचार मलेरिया की तरह है। इससे रोकने के लिए पानी भरे गड्ढे खत्म करने होते हैं। लोकपाल कुनैन की गोली जैसा था जिसे आप बीमार पड़ने पर लेते हैं। भ्रष्टाचारियों को पकड़ने की बजाय भ्रष्टाचार रोकना बेहतर है। कोई अचरज नहीं कि बिज़नेस करने में आसानी वाले शीर्ष देशों में बिल्कुल नहीं या न के बराबर भ्रष्टाचार है। लेकिन, उनके यहां लोकपाल जैसा ओम्बुड्समैन होता है, ताकि उच्च अधिकारियों को जवाबदेह बनाया जा सके।

बिज़नेस करने की आसानी से आम आदमी की ज़िंदगी में सुधार हो सकता है। दिल्ली नगर निगम ने निर्माण की अनुमति जल्दी देने के लिए जो प्रक्रियागत बदलाव किया, उसी से जन्म प्रमाण-पत्र मिलने के दिन भी घट गए। दिल्ली में ड्राइविंग लाइसेंस में बिना कोई लेन-देन के एक घंटा लगता है।

सौ की रैंकिंग के साथ भारत को अब भी लंबा रास्ता तय करना है। आईडीएफसी रिपोर्ट ने इरादे और हक़ीकत में फर्क को रेखांकित किया है। ज्यादातर आंत्रप्रेन्योर नहीं जानते कि उनके राज्य में एक ही खिड़ की से मंजूरी मिल जाती है। रोजगार पैदा करने वाले क्षेत्रों को अब भी भ्रष्ट लेबर इंस्पेक्टरों का सामना करना पड़ता है। भू-अधि ग्रहण लालफीताशाही में फंसा है। जैसे ही सरकार को राज्यसभा में बहुमत मिले वह श्रम और भू-अधिग्रहण संबंधी लंबित विधेयक पारित करे। यदि अफसरों को समय पर मंजूरी देने और विवाद निपटाने के लिए प्रोत्सािहत व पुरस्कृत किया जाए तो रेटिंग और सुधरेगी। मोदी ने वादा किया है कि अगले कार्यकाल में वे प्रशासनि क सुधार लाएंगे। कल्पना कीजिए कि यदि हमने 1991 में बिज़नेस करने को आसान बनाया होता! तब भारत आज की तुलना में बहुत कम भ्रष्टाचार के साथ दोगुना समृद्ध होता। भारत के समाजवादी युग ने सामाजिक न्याय के साथ अार्थिक वृद्धि का वादा किया था पर दोनों में से कुछ नहीं दिया।

जब शेक्सपीयर ने 'रिचर्ड थर्ड ' में कहा- 'हमारे असंतोष की इस शीत ऋतु को यॉर्क के इस पुत्र ने अब भव्य ग्रीष्म में बदल दि या है' तो वे कहना चाहते थे कि दुख का वक्त गुजर चुका है। मैं कामना करता हूं कि ऐसा हम अपने देश के लिए कह सकें। जब हमारी आर्थिक वृद्धि दर 8 फीसदी को पार करेगी और नौकरियां थोक में आएगी, तभी सच्चे अर्थों में 'अच्छे दिन' आएंगे। इस बीच, यह एक बहुत बड़ा कदम है।

AttachmentSize
28bhopal city-pg12-0.pdf1.1 MB

Post new comment

The content of this field is kept private and will not be shown publicly.
CAPTCHA
This is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions.
Image CAPTCHA
Enter the characters shown in the image.