नियति से मिलने का एक और ऐतिहासिक क्षण

नियति से मिल ने का एक और ऐतिहासि क क्षण

इतिहास में ऐसे क्षण दुर्लभ ही होते हैं जब कोई राष्ट्र खुद ही लगाई अड़चनों के बावजूद समझ-बूझ भरा फैसला करता है। आज आधी रात को ऐसा एक क्षण आने वाला है, जब भारत ब्रेड से बि जली और बैग्स तक 17 प्रादेशिक व संघीय शुल्कों की जगह वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू करेगा और एक साझा बाजार बन जाएगा, जिसकी आबादी यूरोप, अमेरिका, ब्राजील, मेक्सिको और जापान की मिली-जुली आबादी से ज्यादा है। भारतीय इतिहास का सबसे दूरगामी कर सुधार होने के साथ यह अमल में लाने की दृष्टि से सबसे जटिल भी है। एकाधिक टैक्स दरें और एकाधिक अधिकारियों वाली यह प्रणाली भारतीय राज्यों की पहले से ही कम प्रशासनिक क्षमता को कसौटी पर कसेगी। देश के प्रभावशाली राज्यों और बंटी हुई राजनीति क पार्टियों को जीतने में दस साल लगे और इसके लिए ऐसे समझौते हुए हैं, जो हो सकता है दुनिया की सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था को जीएसटी के पूरे लाभ लेने से रोक दें।

यदि बॉलीवुड, क्रिकेट और हिंग्लिश हम भारतीयों को जोड़ते हैं तो अप्रत्यक्ष करों की हमारी अतार्किक व्यवस्था हमें विभाजित करती हैं। जो भी व्यक्ति यहां कोई प्रोडक्ट बेचता है वह राज्यों के सेल्स टैक्स, सेंट्रल सेल्स टैक्स, एंट्री टैक्स, टर्नओवर टैक्स, सर्विस टैक्स, एक्साइज, ऑक्ट्रॉय के दु:स्वप्न से गुजरता है और ये सारे मिलकर भारत को दुनिया का सबसे अधिक अप्रत्यक्ष करों वाला देश बना देते थे। ऑक्ट्रॉय सबसे खराब था। दिल्ली से मुंबई जाने में ट्रक वाले को 35 घंटे लगते हैं। इसमें 15 घंटे तो हर चेक पोस्ट पर रिश्वत की झिकझिक में लग जाते थे।

यह भारत के इतिहास में विज़नरी संवैधानिक क्षण भी है, जब 29 राज्य और 7 केंद्र शासित प्रदेश स्वैच्छा से करारोपण में अपनी कुछ सम्प्रभुता छोड़ देंगे ताकि राष्ट्र का सम्मिलित आर्थिक व सामाजिक कल्याण हो सके। एक ऐसे समय में जब इंग्लैंड में ब्रैग्जि़ट समर्थक टोरी सम्प्रभुता के संकेतों के लिए लड़ रहे हैं, आश्चर्य जनक रूप से भारतीयों ने 'सम्मिलित सम्प्रभुता' का रास्ता चुना, जो इस गंभीर अहसास पर आधारित है कि आपस में जुड़ी इस दुनिया में स्वतंत्र रूप से काम करना भ्रम ही है। आश्चर्यजनक इसलिए हैं, क्योंकि भारतीय बहस बहुत करते हैं और आपस में सहमत होना उनके लिए बहुत कठिन होता है। लेकिन आज आधी रात पूरा केंद्रीय मंत्रिमंडल, राष्ट्रपति, राज्यों के मुख्यमंत्री, संसद सदस्य, जीएसटी काउंसिल के सदस्य और पूर्व प्रधानमंत्री संसद के केंद्रीय हॉल में इस ऐतिहासिक घड़ी को रेखांकित करने के लिए आयोजित भव्य समारोह में एकत्र होंगे, जो 70 साल पहले स्वतंत्रता के उदय के साथ हुए 'नियति से साक्षात्कार' की याद ताजा करेगा।

यह व्यापक कर सुधार धीरे-धीरे भारतीय बिज़नेस के परिदृश्य को नया आकार देगा। हर राज्य में अलग सप्लाई चैन स्थापित करने की बजाय कंपनियां एक ही वेयर हाउस से अपने प्रोडेक्ट्स को वितरीत कर पाएंगी। कच्चे माल की खरीद और निर्माण की सुविधाएं स्थापित करने के बारे में निर्माता अधिक तर्क संगत फैसले ले पाएंगे। अपवादों से भरी प्रादेशिक कर संहिताओं का स्थान एक ही, आईटी संचालित, डिजिटल फाइलिंग ले लेगी। इसका मतलब होगा लालफीताशाही में कमी और अधिकारियों से कम वास्ता । लॉजिस्टिक की घटी लागत और कार्यकुशलता बढ़ने का फायदा उपभोक्ताओं को मिलेगा।

चूंकि यह मूल्यवर् द्धित (वैल्यू एडेड) टैक्स है, विक्रे ता इससे बचना नहीं चाहेगा ताकि जो टैक्स पहले ही चुकाया जा चुका है उसका क्रेडिट वह खो न बैठे। करों के अधिक पालन से कर वसूली का दायरा बढ़ेगा और उस देश में सरकार की आमदनी बढ़ेगी, जो कर चोरी के लिए बदनाम है। विशाल एकीकृत बाजार और सरलीकृत कर ढांचे के कारण अधिक विदेशी प्रत्यक्ष निवेश आकर्षित होगा। यह सब आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देगा। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक जीएसटी के कारण भारत में मध्यम अवधि में 8 फीसदी से अधिक की वृद्धि नज़र आएगी। वित्त मंत्री अरुण जेटली का अनुमान है कि जीएसटी लंबी अवधि में वृद्धि में दो प्रतिशत अंकों का योगदान देगा।

लेकिन जटिलता के लिए भारत के प्रेम का मतलब है कि नए कर से व्यापक भ्रम की स्थिति भी पैदा होगी। कंपनि यों को थोक में रिटर्न भरने होंगे। कई देशों की तरह कर की एक ही दर होने की बजाय यहां चार दरें- 5,12,18 और 28 फीसदी हैं। इसका मतलब है विवादों और प्रोडक्स को वर्ग विशेष में लाने के लिए लॉबिइंग की गुंजाइश, जो अक्षम न्यायिक व्यवस्था को ठप कर देगी। ऊंची दर के कारण भारत को ऊंचे जीएसटी वाले देश की पहचान मिलेगी। आदर्श रूप में तो 18 और 28 फीसदी को मिलाकर 20 फीसदी की स्टैंडर्ड दर लानी थी, जिससे वस्तुओं और सेवाओं में फर्क खत्म हो जाता। इस तरह कर अधिकारी द्वारा फर्क करने की गुंजाइश खत्म हो जाती। हर किसी की असली चिंता तो टैक्स नौकरशाही की तैयारी न होना और उसका अड़ियल रवैया है, जो कंप्यूटर और डिजिटल रिकॉर्ड के मामले में कमजोर है।

एक तरह से यह अच्छी बात है कि कुल-मि लाकर पूरा सिस्टम हर किसी के लिए आसान हो जाएगा। जो कभी दूर का सपना लगता था, अब हकीकत है और इसका श्रेय बहुत सारे लोगों को है, जिन्होंने ने यह खुशनुमा नतीजा दिया है। तानाशाही रवैए के लिए कभी-कभी आलोचना झेलने वाली इस सरकार ने धैर्य और सुनने की काबिलियत का उल्लेखनीय प्रदर्शन किया- उसने हठी राज्यों की खुशामद की, संविधान में कष्टसाध्य संशोधन किए, जीएसटी काउंसिल में आम सहमति निर्मित की और असहमति के स्वरों को भी समायोजित किया। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मोदी ने जीएसटी का विरोध किया था, लेकिन उन्हें श्रेय देना होगा कि 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने अपना दृष्टिकोण बदला। इससे भी महत्वपूर्ण तो यह है कि इससे मोदी को भूमि, श्रम व पूंजी के क्षेत्र में अत्यावश्यक सुधार लाने का आत्मविश्वास मिलेगा ताकि वे नौकरियां लाने का अपना चुनावी वादा पूरा कर सकें- यह ऐसा वादा है जो अभी तक अधूरा रहा है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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